जय राम हरे जय कृष्ण हरे अब प्रगटो कल्कि रूप धरे                     जय कल्कि जय जगतपते पदमा पति जय रमापते              जय राम हरे जय कृष्ण हरे अब प्रगटो कल्कि रूप धरे   

जय श्री कल्कि ।
जय माता दी ।


कुल संग्रह / माला संग्रह
3268/30.27

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जय कल्कि जय जगत्पते।
पद्मापति जय रमापते।।


कुल संग्रह / माला संग्रह
3832/35.47

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कल्कि


कुल संग्रह / माला संग्रह
5284/48.97

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कलियुग में भगवान महाविष्णु के अन्तिम व प्रमुख दसवां अवतार

भगवान श्री कल्कि

"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥"

Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 7-8

निरंतर सृष्टि में ऐसी परिस्थितिय़ाँ उत्पन्न होती रही हैं जब संरक्षण व संचालन का कार्य बाधित हुआ, अधर्म बढा, प्रकति का ह्रास हुअा व ज्ञान का विलोपन हुआ, जिसके फलस्वरूप पालनकर्ता भगवान विष्णु को धरा पर अवतार लेने पड़े। भगवान विष्णु के अनन्त अवतारों में से विशेष २४ अवतारों में से प्रमुख १० अवतार हैं और भगवान कल्कि इन दोनों में ही सर्वशक्त्ति युक्त अन्तिम अवतार हैं। जो महाविष्णु की संपूर्ण ६४ कलाओं के साथ युग परिवर्तन हेतु आ रहे हैं ।

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